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खेल दिवस की तरह किताब पढ़ने का दिवस हो जिसमें कोर्स के अलावा किताबें पढ़ें, चर्चा करें!

डॅा.प्रमोद कुमार चमोली

  • इन दिनों आप क्या पढ़ रहे हैं? शिक्षक के पास इसका जवाब होगा तभी स्टूडेंट पढ़ना सीखेगा

रीडिंग कैंपेन बनाम पढ़ने की संस्कृति : शिक्षा विभाग राजस्थान द्वारा प्रखर राजस्थान के तहत 9 सितम्बर से 2 अक्टूबर 2024 तक इसी तरह का अभियान चलाया जा रहा है। भारत सरकार के निपुण मिशन के तहत संचालित प्रखर राजस्थान अभियान के तहत कक्षा एक से आठवीं तक के विद्यार्थियों में बुनियादी साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए यह अभियान शुरू किया गया है। अभियान के माध्यम से राजस्थान के समस्त राजकीय विद्यालयों में कक्षा 1 से 8 के विद्यार्थियों में पठन कौशल का विकास करना, पठन कौशल के माध्यम से अवधारणाओं पर समझ विकसित किया जाना है।

वैसे राजस्थान में इस तरह के कार्यक्रम पूर्व में भी चलाए जा चुके हैं। भारत सरकार द्वारा 1 जनवरी 2022 से 10 अप्रैल 2022 तक 100 दिवसीय रीडिंग कैपेंन चलाया गया था। जिसका भव्य कैलेण्डर और सप्ताहवार गतिविधियां भी जारी की गई थी। इस अभियान के तहत देश के समस्त विद्यालयों मे कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों पढ़ना सिखाया गया था।

भाषा सीखना बनाम पढने का कौशल:

यह जानना भी जरूरी है कि भाषा सीखने के लिए चार महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना जैस कौशलों से गुजरना होता हैं। यानी अर्थपूर्ण सुनने, सुनकर बोलने के उपरांत पढ़ने का कौशल विकसित होता है। खैर, जो भी हो पढ़ना और उसके बाद लिखने के कौशल के विकसित होने के बाद भाषा को सीखा जाता है। हमारे विद्यालयों में आने वाला बच्चा अपने साथ अपनी भाषा को लेकर आता है। विद्यालयो में आते ही उसे सुनने, बोलने के अवसर प्रदान करने की बजाय एवं उसकी मातृभाषा से जोड़कर उसे अन्य भाषा तक लाने की बजाय सीधे पढ़ने और लिखने की बाध्यकारी प्रवृत्ति के चलते कक्षा में सभी विद्यार्थी पढ़ने का कौशल विकसित नहीं कर पाते होंगे। जरूरत भाषा सिखाने के शिक्षण शास्त्र को कक्षा में शिद्दत से लागू करने की है।

पढ़ने के कौशल का विकास:

पढ़ने का कौशल विकसित होने के बाद जब विद्यार्थी धारा प्रवाह पढ़ना सीख जाता है तब उसमें एक नया उत्साह और आत्मविश्वास जागृत होता है। ऐसी स्थिति में उसके उत्साह को बढ़ाने और आत्मविश्वास को पुख्ता करने के लिए उसे नयी-नयी बातें पढ़ने के चाहिए होती हैं। इसलिए उसे नया पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। ऐसे में व्यवस्था उसे नया और पाठ्यपुस्तकों से इतर पढ़ने के लिए प्रेरित नहीं कर पाती। नतीजा पाठ्यपुस्तक के पाठों को बार-बार पढ़ने से उसकी पढ़ने में अरुचि हो जाती है। यहां पर आकर पढ़ने के कौशल के मायने धारा प्रवाह अर्थपूर्ण ढंग से पढ़ने से आगे बढ़कर उसे उत्साही पाठक बनाना हो जाता है। जिसमें हम पूर्णतया असफल हो जाते हैं। पढ़ने का कौशल विकसित करने के लिए हमें विद्यार्थियों को कोर्स इसे इतर पुस्तके उपलब्ध करवाना व उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करना जरूरी हो जाता है। ताकि वह एक सक्षम पाठक बन सके।

पाठक बनना क्यों जरूरी है:

आजकल पढ़ाई के अत्यन्त कैरियर ओरियन्टेड हो जाने के कारण यह मान लिया गया है कि कोर्स से इतर पढ़ना अथवा साहित्य को पढ़ने का कोई लाभ नहीं है। लेकिन यह समझना जरूरी है कि कहानी या कविता आज की अस्त-व्यस्त दुनिया से हमें ‘कल्पना की दुनिया में ले जाती है। कल्पनाएं नई सोच और खोज की जननी होती हैं। इन्हें पढ़ना आत्म-अभिव्यक्ति को विकसित करने में भी मदद करता है- नए शब्द सीखने से लेकर विभिन्न पात्रों का सामना करने तक, बच्चों को अपनी दुनिया से बहुत दूर एक दुनिया का अनुभव करने का मौका मिलता है, जो उन्हें बहुत जरूरी अनुभव प्रदान करता है। जिस तरह चलना शारीरिक व्यायाम है, उसी तरह पढ़ना भी एक मानसिक व्यायाम है। यह मन-मस्तिष्क को आकर्षक तरीके से विकसित करता है। यह ध्यान केंद्रित करने और एकाग्रता बनाए रखने, नई जानकारी प्राप्त करने , किसी विषय पर अपनी राय बनाने और और अपने आप को सशक्त रूप से अभिव्यक्त करने का प्रशिक्षण प्रदान करता है। तेजी से विकसित हो रही दुनिया में पढ़ने की आदतें और भी जरूरी हो गई हैं। यहाँ पढ़ना न केवल पढ़ना है बल्कि बदली हुई तेजी से लगातार बदलती परिस्थितियों में जीवन में सामंजस्य बैठाने के लिए उपचारात्मक प्रक्रिया तो है ही साथ नित बदलते जीवन में नई खोज, नवाचार के जरूरी आवश्यक प्रेरणा के
लिए पढ़ना आवश्यक है। विद्यार्थियों को नया ज्ञान बनाने के लिए सूचना प्राप्त कर उसे संसाधित कर ज्ञान में तब्दील करने एवं उसका मूल्यांकन विश्लेषण करने के गुण को विकसित करने के लिए एक अच्छा पाठक बनना जरूरी हो जाता है।

प्रत्येक विद्यार्थी उत्साही पाठक क्यों नहीं बन पाता है?

इसका कारण यही है कि पढ़ने के लिए हम उचित माध्यम और वातावरण उपलब्ध नहीं करवा पाते हैं। विभिन्न शोधों में यह पाया गया है कि अगर बच्चों को छोटी उम्र से ही कोई वयस्क पढ़कर सुनाता है अथवा उसे कहानियां सुनाई जाती हैं तो तो ऐसे बच्चों में पढ़ने की आदत विकसित होने की प्रबल संभावना होती है। आजकल की परिस्थितियों में बच्चों को एकल परिवारों के चलते ऐसा परिवेश नहीं मिल पा रहा है। विद्यालयों में पुस्तकालय या रीडिंग काॅर्नर का अभाव या होने पर भी उसका पर्याप्त उपयोग नहीं किया जाना भी इसका कारण हो सकता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक विद्यार्थी में पढ़ने की आदत डालने के लिए पढ़ने की संस्कृति को विकसित किया जाना आवश्यक है।

पढ़ने की संस्कृति:

पढ़ने का कौशल विकसित होने के बाद पढ़ने की आदत विकसित नहीं हो पाना इस कौशल की पूर्णता को नकारता है। लेकिन यहां यह समझना जरूरी है कि एक पढने दीवाने या किताबी कीड़े की संज्ञा से विभुषित लोग भी हमारे आस-पास ही पाए जाते हैं। दरअस्ल पढ़ने की आदत विकसित होने का कार्य कोई निर्वात में नहीं होता है। यह वातावरण यानी कि अपने आस-पास के प्रभाव से विकसित होता है। यदि आपके आस-पास पढ़ने का वातावरण है। अतः कहा जा सकता है कि यदि हमारे आस-पास दो-चार लोग किताबे पढ़ते हैं उस पर बातचीत करते हैं। तो हम भी पढ़ने के शौकीन हो सकते हैं। इसे ही पढ़ने की संस्कृति कहते हैं।

अभी कुछ दिनों पूर्व मैंने अपने कई मित्रों (जिनमें कई साहित्य से जुड़े हैं और कई शिक्षक साथी हैं) से बातचीत कर यह जानने का प्रयास किया कि विगत दिनों में नया क्या पढ़ा है। बहुत कम ऐसे लोग मिले जिन्होंने नया कुछ पढ़ा हो। इसमें कोई दोराय नहीं है कि स्क्रीन पर बढ़ते समय ने पढ़ने की संस्कृति का नुकसान किया है। लेकिन यह भी पूर्ण सत्य नहीं है। केवल परीक्षा और कम्पीटीशन की तैयारी हेतु पढ़ने की प्रवृत्ति के चलते पढ़ने की संस्कृति के विकास में बाधा पहुंची हैं। गली-गली में खुली लाईब्रेरियां इसका स्पष्ट उदाहरण हैं जहां किताबों के नाम पर कम्पीटीशन की किताबें व पढ़ाई के नाम पर कम्पीटीशन की तैयारी होती दिखाई देती है। दरअस्ल इसके पीछे बड़ी बात लगातार परीक्षाओं का होना भी माना जा सकता है। बड़ी और पुरानी लाईब्रेररियों में पुरानी किताबें धुल फांकती हुई नजर आती हैं।

रीडिंग कैंपेन बनाम पढ़ने की संस्कृति:

धारा प्रवाह पठन कौशल को विकसित करने के लिए मात्र चलाए जाते हैं तो यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि शिक्षा व्यवस्था बच्चों को धारा प्रवाह पठन कौशल क्यों नहीं विकसित कर पा रही? इससे पढ़ने की संस्कृति विकसित करने में कोई खास मदद नहीं मिल सकती है। पढ़ने की संस्कृति धीरे-धीरे और लगातार विकसित होने वाली प्रक्रिया है उसमें इस प्रकार के अभियान कुछ गतिशीलता तो ला सकते हैं लेकिन इसके लिए लगातार प्रयास किये जाने की आवश्यकता अधिक हैं। इन अभियानों के दीर्घकालिक लक्ष्य पढ़ने की सस्कृति विकसित कर विद्यार्थियों को उत्कृष्ठ पाठक बनाया जाना होना चाहिए।

क्या किया जा सकता है:

  • पढ़ने का शौक धीरे-धीरे लेकिन लगातार विकसित होता है। स्कूलों में पढ़ने की संस्कृति बनाने के लिए थोड़े समय का प्रयास पर्याप्त नहीं है।
  • विद्यालयों में पुस्तकालय हो जिसमें विद्यार्थी पुस्तक पढ़ सके और जरूरत होने पर घर ले जाकर पढ़ सके।
  • शिक्षकों को स्वयं भी पढ़ने की आदत विकसित करना एवं उसके बारे में विद्यार्थियों से चर्चा करना।
  • छोटी कक्षाओं के लिए कक्षा में ही पुस्तकें उपलब्ध हो यानी रीडिंग काॅर्नर हो।
  • बच्चे पढ़ रहें है इस पर चर्चा हो। कक्षा में किसी किताब पर चर्चा। कहानी पर चर्चा कविता पर चर्चा।
  • बच्चों द्वारा पढ़ी गई किताब पर अपनी बात सभी के सामने रखना। विद्यालयों में खेल दिवस की तरह पढ़ने का दिवस मनाना जिस दिन केवल पढ़ने (कोर्स से इतर) का ही बच्चे आनंद लें।



डा.प्रमोद चमोली के बारे में:

शिक्षण में नवाचार के कारण राजस्थान में अपनी खास पहचान रखने वाले डा.प्रमोद चमोली राजस्थान के माध्यमिक शिक्षा निदेशालय में सहायक निदेशक पद पर कार्यरत रहे हैं। राजस्थान शिक्षा विभाग की प्राथमिक कक्षाओं में सतत शिक्षा कार्यक्रम के लिये स्तर ‘ए’ के पर्यावरण अध्ययन की पाठ्यपुस्तकों के लेखक समूह के सदस्य रहे हैं। विज्ञान, पत्रिका एवं जनसंचार में डिप्लोमा कर चुके डा.चमोली ने हिन्दी साहित्य व शिक्षा में स्नातकोत्तर होने के साथ ही हिन्दी साहित्य में पीएचडी कर चुके हैं।
डॉ. चमोली का बड़ा साहित्यिक योगदान भी है। ‘सेल्फियाएं हुए हैं सब’ व्यंग्य संग्रह और ‘चेतु की चेतना’ बालकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके है। डायरी विधा पर “कुछ पढ़ते, कुछ लिखते” पुस्तक आ चुकी है। जवाहर कला केन्द्र की लघु नाट्य लेखन प्रतियोगिता में प्रथम रहे हैं। बीकानेर नगर विकास न्यास के मैथिलीशरण गुप्त साहित्य सम्मान कई पुरस्कार-सम्मान उन्हें मिले हैं। rudranewsexpress.in के आग्रह पर सप्ताह में एक दिन शिक्षा और शिक्षकों पर केंद्रित व्यावहारिक, अनुसंधानपरक और तथ्यात्मक आलेख लिखने की जिम्मेदारी उठाई है।


राधास्वामी सत्संग भवन के सामने, गली नं.-2, अम्बेडकर कॉलौनी, पुरानी शिवबाड़ी रोड, बीकानेर 334003